काव्यशास्त्र की परम्परा एवं आचार्य विश्वनाथ का साहित्यदर्पण
मयूरी झा
काव्यशास्त्र का प्राचीन नाम अलंकार शास्त्र है। यद्यपि दण्डी के शब्दों में इसका मूल तत्त्व शोभा या सौन्दर्य कहा जा सकता है। मध्य युग तक आते-आते अलंकारशास्त्र को साहित्य शास्त्र भी कहा जाने लगा। प्रारम्भ में आचार्यों ने इस शास्त्र का नाम काव्यलंकार रखा था। शास्त्र शब्द का प्रयोग उसके साथ नहीं होता था। किसी गूढ तत्व का संशन या प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ भी शास्त्र कहलाते है।इसी आधार पर अलंकारशास्त्र या काव्यशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग हुया है। इस शोध प्रपत्र में काव्यशास्त्र की परम्परा एवं साहित्यदर्पण के बारे में वर्णन किया जाएगा।