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International Journal of Sanskrit Research
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2022, Vol. 8, Issue 2, Part A

ऐतिहासिक संदर्भों के आलोक में ‘प्रतापविजयम्’

डॉ. आनन्द कुमार

मुगलसम्राट् अकबर मेवाड़ प्रदेश को अपने अधीन करने के लिए कृतसंकल्प था तो प्रणवीर महाराणा प्रताप उसकी रक्षा करने के लिए। ऐतिहासिक ग्रन्थों में एवं मूलशंकर याज्ञिक विरचित ‘प्रतापविजयम्’ नाटक में यह बात एकसमान वर्णित है। बिना युद्ध मेवाड़ के भाग्य का निर्णय नहीं हो सकता, यह बात दोनों पक्षों को ज्ञात थी। अतः राणा प्रताप युद्ध हेतु सेना को सुसज्जित करते हैं। उनका यह मानना है कि मेवाड़ के पर्वतीय प्रदेश सदैव रक्षक रहे हैं। वहां छिपकर यवनों के विशाल सैन्य बल को नष्ट किया जा सकता है। अतः सेनापति को सेना सहित पर्वतीय प्रदेश में रहने की आज्ञा देते हैं। इधर अकबर ने भी मानसिंह के नेतृत्व में हल्दीघाटी के मैदान में सैनिक दल को भेज दिया। ऐतिहासिक ग्रन्थों एवं प्रतापविजय नाटक दोनों में समानतः यह वर्णन प्राप्त होता है कि महाराणा प्रताप चेतक पर सवार होकर मानसिंह के हाथी के पास जा पहुंचे और चेतक ने अपने आगे के दोनों पैर हाथी के ऊपर रख दिए। इसके पश्चात् महाराणा ने भाले से मानसिंह के ऊपर प्रहार किया, दुर्भाग्य से मानसिंह सुरक्षित रहा। वस्तुत: ऐतिहासिक संदर्भों के आलोक में ‘प्रतापविजयम्’ की समीक्षा करने का प्रयास प्रस्तुत शोधपत्र में किया गया है। इतिहास–ग्रन्थों एवं इस नाटक में एक समान यह वर्णन प्राप्त होता है कि मानसिंह की मृत्यु का असत्य समाचार सुनकर मुगलसेना में भगदड़ मच गई परन्तु उन्होंने सेना में फिर से उत्साह का संचार किया और अभूतपूर्व युद्ध छिड़ गया। महाराणा प्रताप ने नानविध कष्टों का वीरतापूर्वक सामना करते हुए स्वतंत्रताप्राप्ति रूपी व्रत को पूर्ण किया। महाकवि याज्ञिक ने महाराणा प्रताप के उदात्त चरित्र के प्रतिपादन के लिए ही कुछ स्थानों पर काल्पनिक परिवर्तन किया है जो धीरोदात्त नायक और वीररस की अभिव्यंजना के लिए सर्वथा उचित और सार्थक है।
Pages : 17-20 | 429 Views | 109 Downloads
How to cite this article:
डॉ. आनन्द कुमार. ऐतिहासिक संदर्भों के आलोक में ‘प्रतापविजयम्’. Int J Sanskrit Res 2022;8(2):17-20.

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