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2022, Vol. 8, Issue 1, Part C

श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मप्रबन्धन

Shruti Rai

श्रीमद्भगवद्गीता सम्पूर्ण वैश्विक स्तर पर अत्यन्त प्रसिद्ध एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ के रूप में निर्विवाद रूप से स्वीकृत है। हिन्दू धर्म में इसकी महत्ता एक धार्मिक ग्रन्थ के रुप में है, किन्तु यह ऐसा ग्रन्थ है, जो सम्पूर्ण मानवजाति के लिये कल्याणकारी है। अद्यतन काल में गीता का अध्ययन आत्मप्रबन्धन के परिप्रेक्ष्य में भी हो रहा है। आत्मप्रबन्धन मनुष्य के सर्वांगीण रूप से स्वस्थ होने को अवस्था है। आत्मप्रबन्धित व्यक्ति सारे प्रकार के दुखॊं से छुटकारा अनायास ही प्राप्त कर लेता है। प्रस्तुत शोधपत्र में इसी विषय को केन्द्रबिन्दु बनाकर श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मप्रबन्धन पर परिचयात्मक स्तर पर विचार करने का प्रयास किया गया है।
Pages : 135-138 | 843 Views | 337 Downloads


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How to cite this article:
Shruti Rai. श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मप्रबन्धन. Int J Sanskrit Res 2022;8(1):135-138.

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