प्राचीन काल में तो आयुर्वेद का प्रसार यूरोप और एशिया में हुआ ही, मध्यकाल में इनका पुनः प्रवेश हुआ। समस्त विश्व की चिकित्सा पद्धतियों पर आयुर्वेद का प्रभाव व्याप्त था। सुमेरी, बाबुली और आसुर चिकित्सा पर तो उसकी पूरी छाप थी ही, यूनानी दर्शन और चिकित्सा दोनों को प्रभावित कर उसने आधुनिक चिकित्सा की नई नींव डाली। मोनियर ने अपनी संस्कृत-अंगे्रजी डिक्शनरी की भूमिका में लिखा है कि प्राचीन काल में यूरोप की उन्नति के बहुत पूर्व ही भारत ने ज्योतिष गणना विज्ञान एवं चिकित्सा आदि में उन्नति कर ली थी। जिस मिस्र को यूनान का गुरु कहा जाता है उसकी चिकित्सा में जो कुछ है वह आयुर्वेद की ही देन है। पाश्चात्य आधुनिक निदान एवं चिकित्सा की विधियों और औषधियों का समावेश अब आयुर्वेदीय शिक्षा में भी प्रारम्भ हो गया है। जिससे नवीन स्नातक एलोपैथी विधियों की जानकारी प्राप्त करने लगे हैं तथा साथ ही अनुसंधान कार्यों में भी उनकी रुचि बढ़ी है।