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International Journal of Sanskrit Research
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2021, Vol. 7, Issue 6, Part D

उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेखों में भू-प्रबन्धन

नीटू दत्त नौटियाल

भारतीय संस्कृति में आर्थिक प्रबन्धन का मुख्य स्रोत पुरुषार्थ चतुष्टय के अनुसार स्वीकार किया गया है। पुरुषार्थ चतुष्टय के अन्तर्गत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को रखा गया है। इसमें अर्थ को आर्थिक व्यवस्था का प्रमुख तत्त्व माना गया है। मानवीय ईच्छा अनेक ऐसी वस्तुओं से आकर्षित होती है जिन्हें वह प्राप्त करने के लिए नित्य प्रयासरत रहता है। ये सभी प्रकार की आशाएँ एवं आकांक्षाएँ अर्थ द्वारा ही पूरी हो सकती हैं।। भारतीय धर्मशास्त्रकारों ने भी पुरुषार्थ में अर्थ को अभिभूत किया है। मानव समस्त लौकिक सुख को प्राप्त करने के लिए अर्थ को आर्थिक गतिविधियों का विशिष्ट तत्त्व मानता है। पुरातन भारतीय समाज में लोग अपना जीवनयापन करने तथा आर्थिक क्रियाकलापों में वार्ता का प्रयोग भी करते थे। यह वार्ता शब्द जो कि पुरातन काल में उपयोग किया गया था वह मानव के आर्थिक-प्रबन्धन के कार्यों से ही सम्बद्ध था।
Pages : 262-267 | 386 Views | 116 Downloads
How to cite this article:
नीटू दत्त नौटियाल. उत्तराखण्ड के संस्कृत अभिलेखों में भू-प्रबन्धन. Int J Sanskrit Res 2021;7(6):262-267.

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