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International Journal of Sanskrit Research
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2021, Vol. 7, Issue 5, Part F

काव्यात्मविचारे औचित्यस्य स्थानम्

अशोकमण्डलः

काव्यस्योत्कर्षविधायं किं तत्त्वं काव्यस्यात्मा? अमुं विषयमधिकृत्य अलङ्कारशास्त्रे आलङ्कारिकेषु विविधा मतभेदा जायन्ते। तत्र एकादशशताब्द्या उत्तरकाले प्रादुर्भूतस्य क्षेमेन्द्रस्य मते औचित्यमेव काव्यस्य जीवितमेव। “औचित्यं रससिद्धस्य स्थिरं काव्यस्य जीवितम्” इति वचनाद् औचित्यमधिकृत्य तेन औचित्यविचारचर्चा नामको ग्रन्थः प्रणीतः। उचितस्य भाव औचित्यम्। पदवाक्यप्रबन्धार्थगुणालङ्काररसक्रियाकारणलिङ्गवचनकालदेशमधिकृत्य तेन औचित्यानि सलक्षणमुदाहृतानि। भरतेन औचित्यविषये प्रथमतो निर्देशः कृतः। तस्यैव विशदीकरणमानन्दवर्धनेन ध्वन्यालोकग्रन्थे कृतम्। अस्मिन् शोधपत्रे काव्यात्मविचारे औचित्यस्य स्थानं किमस्ति, तस्मिन् विषयेऽत्र समासेन समुपस्थाप्यते।
Pages : 338-342 | 522 Views | 137 Downloads
How to cite this article:
अशोकमण्डलः. काव्यात्मविचारे औचित्यस्य स्थानम्. Int J Sanskrit Res 2021;7(5):338-342.

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