प्राचीन काल से ही समाज में शिक्षा का व्यापक महत्त्व रहा है। समाज का विकास और उसका पतन शिक्षा की व्यवस्था पर ही आधारित रहता है। शिक्षा की समुचित व्यवस्था पर ही बौद्धिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक प्रगति संभव है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली भौतिकता के विकास एवं उन्नति पर आधारित है। सिर्फ पद, प्रतिष्ठा, जीविका, क्षणिक सुख और अन्त में मृत्यु ही ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना का परम लक्ष्य नहीं हो सकता, बल्कि जिसे प्राप्त कर लेने के बाद कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता, वही मानवता का परम लक्ष्य है। अतएव आज आवश्यकता है कि भौतिकता की शिक्षा में वैदिक मूल्यों का भी समावेश किया जाए, ताकि व्यक्ति मानवता को न भूले, वह अपने अधिकार एवं कर्तव्यों की सीमा निर्धारित कर सके, भोग एवं योग दोनों व्यक्ति में समाहित हों।