याज्ञवल्क्यस्मृति में निरूपित न्याय तथा दण्ड व्यवस्था
डॉ. आनन्द कुमार
याज्ञवल्क्य के अनुसार सुशासन से ही राज्य में शान्ति तथा सुरक्षा की स्थापना होती है, समृद्धि आती है, साथ ही व्यक्ति को अपने कार्य–कलाप के संपादन का सुअवसर प्राप्त होता है। चूंकि राज्य में अनेक प्रकृति व प्रवृत्ति के लोग रहते हैं इसलिए उनके नियमन के लिए न्याय तथा दण्ड व्यवस्था अनिवार्य है। राज्य उसके प्रति उदासीन नहीं रह सकता। स्मृतिकार की दृष्टि में न्यायव्यवस्था के लिए यह अनिवार्य है कि राजा क्रोध व लोभ से रहित होकर धर्मशास्त्र के अनुसार विद्वान् ब्राह्मणों से परामर्श कर ही न्याय करे। याज्ञवल्क्यस्मृति के व्यवहाराध्याय में न्याय और दण्ड पर विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। समाज–व्यवस्था बनाए रखने के लिए दुष्टों को दण्ड देना तथा सज्जनों को संरक्षण प्रदान करना राजा का प्रधान दायित्व माना गया है। राजा निष्पक्ष होकर दण्ड दे, यही याज्ञवल्क्यस्मृति का आदेश है।