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International Journal of Sanskrit Research
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2021, Vol. 7, Issue 4, Part C

पाणिनीय गणपाठ का भाषावैज्ञानिक विश्लेषण

प्रियंका

आचार्य पाणिनि द्वारा गणपाठ में सार्थक शब्द समूहों को उपस्थित किया गया है। इन सार्थक शब्दों की प्रातिपदिक संज्ञा भी पाणिनीय व्याकरण द्वारा विहित है। पाणिनीय गणपाठ पदविज्ञान का सूक्ष्म विश्लेषण उपस्थित करता है। लोकप्रयुक्त प्राकृत पाली अपभ्रंष भाषाएँ संस्कृत भाषा की समसामयिक भाषाएँ रही हैं। पाणिनीय व्याकरण का उद्देष्य तत्कालीन लोकप्रयुक्त अनेक अपभ्रंष शब्दों से संस्कृत शब्दों की शुद्धता, पृथकता बनाए रखना तथा संस्कृत शब्दों के अर्थो, उच्चारणों, प्रयोगों, सिद्धियों को ज्ञापित करना रहा है। महाभाष्य में एक ही शब्द के अनेक अपभ्रंष रूपों की चर्चा मिलती है। संस्कृत शब्दांे से पृथक प्राकृत पाली अपभ्रंष भाषाओं के शब्दों को महाभाष्य में सम्मिलित रूप से अपभ्रंष शब्द द्वारा अभिहित कर दिया गया है। पाणिनीय गणपाठ के अनेक शब्द प्राकृतादि भाषाओं में सदृष रूप वाले, स्वरागम वाले अथवा व्यंजन परिवर्तन वाले प्राप्त किये जा सकते हैं। प्राकृतादि भाषाओं के इन सदृष रूप वाले तथा परिवर्तित रूप वाले पाणिनीय गणपाठ के शब्दों में अर्थ की भिन्नता तथा अभिन्नता दोनों ही देखी जाती है प्रस्तुत शोध पत्र द्वारा पाणिनीय गणपाठ गत शब्दों के अर्थ परिवर्तन, अर्थ विकास, अर्थप्रयोगादि का विश्लेषण वैदिक, प्राकृत, संस्कृत, पाली, अपभ्रंष भाषाओं के कोषग्रन्थों तथा साहित्यिक ग्रन्थों के सहाय से प्रस्तुत किया जाएगा।
Pages : 171-173 | 530 Views | 119 Downloads
How to cite this article:
प्रियंका. पाणिनीय गणपाठ का भाषावैज्ञानिक विश्लेषण. Int J Sanskrit Res 2021;7(4):171-173.

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