प्राचीन संस्कृत वाङ्मय में संस्कृति तत्त्व मीमांसा” में वैदिक संस्कृति
Dr. Gauri Bhatnagar
किसी साहित्य की महानता सर्वप्रथम उसकी विषयवस्तु के मूल्य एवं महत्त्व में तथा उसके विचारों की उपयोगिता में निहित होती है, परन्तु इसके साथ ही आवश्यक है कि किसी संस्कृति की आत्मा और जीवन को अथवा उसके जीवन्त एवं आदर्श मन को उसकी किन्हीं महत्तम अथवा अत्यन्त संवेदनशील प्रतिनिधि आत्माओं की प्रतिभा के द्वारा प्रकट करने में किस सीमा तक सहायक होता है। वैदिक साहित्य इस कसौटी पर खरा उतरता है । वेद आर्य संस्कृति तथा सभ्यता के आधार हैं । वेद मानव मात्र के लिये वह दिव्य ज्योति है, जिससे आलोकित मानव को अपने सच्चे कर्मपथ का ज्ञान होता है। अतः मनु ने वेदों को सर्वज्ञानमय, समस्त विद्याओं का आधार तथा आदि स्रोत माना है। वेदों के द्वारा ही प्राचीन भारतीय जीवन दर्शन, कार्यकलाप, आचार-विचार, नैतिक एवं सामाजिक व्यवहार का ज्ञान होता है। यह युगों-युगों से प्रवाहित होने वाली वह पवित्र अक्षुण्ण ज्ञान गंगा की धारा है, जो अनेक संक्रमण - व्युत्क्रमणों को पार करती हुई आज भी प्रवाहित हो रही है तथा जिसमें अवगाहन कर मानव हृदय को परम विश्रान्ति की प्राप्ति होती है।