संस्कृत काव्यजगत् में शतककाव्य की एक विस्तृत परम्परा रही है। शृघõार, नीति, भक्ति, वैराग्यादि इसके विषय रहे हैं, जिनमें आत्माभिव्य×जना की प्रधानता होती है। भावातिरेक, कल्पना और संगीत इसके प्रमुख तत्त्व रहे हैं। भाषा और भाव के समन्वय के साथ-साथ संक्षिप्तता इसका एक अनिवार्य घटक है। प्रस्तुत शोधालेख के माध्यम से शतककाव्य की परम्परा को संक्षिप्तरूप में प्रस्तुत किया गया है।