कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में श्रीमद्भगवद्गीता का सन्देश
डाॅ0 गीता परिहार एवं डाॅ0 अंशू सरीन
महर्षि वेद व्यास जी कृत महाभारत के भीष्म पर्व के पच्चीसवें अध्याय से लेकर बयालीसवें अध्याय तक भगवान श्रीकृष्ण के मुखारविन्द से निसृत ’भगवद् गीता’ मानव-जाति के कल्याणार्थ एक सर्वश्रेष्ठ कृति है। इसमें मानव -मात्र के कल्याण के लिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का सहज समन्वय है। यह अध्यात्म विद्या को प्रकाशित करने वाली दिव्य -दीप-प्रभा है।
निस्सन्देह गीता में सभी शास्त्रों का विशेषतः उपनिषदों का सार संग्रहीत है, जिनमें ब्रह्म (परमात्मा) जीव (आत्मा) तथा माया (प्रकृति) अर्थात् जगत् का विशेष विवेचन किया गया है। इन दार्शनिक विषयों के साथ परमात्मा की प्राप्ति हेतु निष्काम कर्मयोग तथा ज्ञानयोग के साधनों के अनुपालन का अद्भुत एवं अभूतपूर्व दिव्यज्ञान भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को प्रदान किया है। सामाजिक परिस्थितियाँ जो सुखात्मक व दुःखात्मक होती हैं वे शोक करने योग्य नहीं होती है क्योंकि कहा गया है -
चक्रवत परिवर्तन्ते दुःखानि सुखानि च
मैं यहाँ यह बताना चाहती हूँ कि ’कोरोना वायरस का संक्रमण’ जिसने आज विश्व का अधिकांश भाग अपनी गिरफ्त में ले रक्खा है, वह भी शोक करने योग्य नहीं हैं, अपितु अर्जुन की भाँति इस रणभूमि में हमें अपनी सही भूमिका (कर्तव्य) निभाने का समय है। इसलिए इस संक्रमण से घबराने की नहीं अपितु धैर्य एवं संयम के साथ लड़ने की आवश्यकता है। इस संक्रमण को समूलतः नष्ट करने के लिए सभी को प्रयत्नशील होना चाहिए ।
जैसाकि सर्वविदित तथ्य है कि कोरोना वर्तमान समय में वैश्विक महामारी बन चुका है परिणामतः यह भी एक सुनिश्चित तथ्य है कि मानव-जाति को इसके वैयक्तिक व सामाजिक, तात्कालिक एवं दूरगामी परिणाम झेलने पड़ेंगे । वर्तमान समय में भारतीय समाज में कोरोना के कारण न जाने कितने लोग मानसिक व्याधियों से ग्रसित हो गये हैं।
अन्त में यह कहना चाहूँगी कि आज कोरोना वायरस के कारण आये संकट में यदि मानव-जाति शोध पत्र में वर्णित स्थित प्रज्ञ की भाँति जीवन जीने का अभ्यास कर लेता है तो उसको वर्तमान स्थिति संकट प्रतीत न होकर एक सामान्य जीवन ही प्रतीत होगा।