यथार्थ एवं वाद उभयपद की योगे से यथार्थवाद पद निर्मित होता हैं। ज्ञानेन्द्रियद्वारा किया गया प्रत्यक्ष वस्तु का ज्ञान ही यथार्थ कहा जाता हैं। आधुनिक भारतीय साहित्यशास्त्र में यही यथार्थ का सिद्धान्त यथार्थवाद की पृष्ठभूमि के रूपमे स्थित हैं। यथार्थवाद मे पृथ्वि की वस्तुस्थिति जिस तरह की है उसी रूप में उस को समझकर वर्णन एवं चित्रण किया जाता हैं। यथार्थवाद की प्रत्यक्ष सम्बन्ध मनवसमाज से होती हैं। इस लेख की अनुसन्धानात्मक विषय विश्वास विरचित कविकोपकलापः नाट्य सङ्ग्रह के कृपाणखल्वाटचरितम्, कविकोपकलापः, साक्षात्कारः एवं शठं प्रति शाठ्यं चार नाटकौं में प्रतिपादित सामाजिकयथार्थ विषय का अध्ययन हैं। नाटककार विश्वासद्वारा विरचित कविकोपकलापः नामक नाट्यसङ्ग्रह में पौराणिक एवं समाजिक विषय को लेकर नाटकौं की रचना किया गया हैं। पौराणिक विषय ग्रहण किया गया नाटकौं में यथार्थवाद की न्यून प्रयोग पाया जाता हैं। उन नाटकौं को छोडकर अन्य नाटक में समाज में विध्यमान समस्याऔं, आर्थिक सामाजिक विसङ्गतिऔं, पारिवारिक समस्याऔं, मानव के मानव उपर मूल्यहिनता, धूर्तचरित एवं मानवइच्छा आकाङ्क्षाका भी यथावत सरल समबाद माध्यम से सतत प्रतिपादित किया गया हैं। ये नाट्यसंग्रह कूल नौं नाटकौं का सङ्ग्रह हैं। इनमे विषय के आधार में पौराणिक एवं सामाजिक नाटक हैं। सामाजिक विषयवस्तु अङ्गिकृत किये हुए नाटक में सामाजिक यथार्थवाद का प्रवलरूप देखा जाता हैं।।