तैत्तिरीयोपनिषद् की गणना प्रमुख 11 उपनिषदों में की गई है। अन्य उपनिषदों की भांति इसका प्रतिपाद्य विषय भी ब्रह्म के स्वरूप का स्पष्टीकरण और ब्रह्म की प्राप्ति के मार्ग का उद्बोधन है। इसकी अन्तिम वल्ली भृगु वल्ली कही जाती है। प्रस्तुत पत्र में भृगुवल्ली में गुरु के द्वारा उपदिष्ट मार्ग का अनुपालन करते हुए वरुण पुत्र भृगु ने ब्रह्म को कैसे पहचाना, इसका वर्णन किया गया है। इसी प्रसंग में गुरु और शिष्य के जो आदर्श सम्मुख आये उनका भी विवेचन किया गया है।