कर्म-सिद्धान्त के विविध पक्षॊं का परिचयात्मक अनुशीलन
Shruti Rai
भारतीय संस्कृति कर्मप्रधान संस्कृति है। अतः प्रत्येक शास्त्र कर्म के सिद्धान्त पर अपने विचार अवश्य प्रस्तुत करता है, विशेषकर भारतीय दर्शन परम्परा। ज्ञातव्य है कि सभी भारतीय दार्शनिक परम्पराऒं ने अपने अपने मूलभूत अवधारणाऒं के आधार पर कर्म के सिद्धान्त की विशद विवेचना की है। अतः आस्तिक दर्शन एवं नास्तिक दर्शन आदि ने कर्म के विविध पक्षॊं का अवलोकन किया है, उदाहरण के लिए- मीमांसा दर्शन की यज्ञपरक कर्म की व्याख्या है, जबकि जैन दर्शन नैतिकता के आधार पर कर्म के सिद्धान्तॊं की स्थापना करता है। इसीप्रकार भगवद्गीता, उपनिषदादि शास्त्रों में निष्काम कर्म के लिये प्रेरणा दिया गया है। इसप्रकार से हम देख सकते हैं कि विभिन्न भारतीय दर्शनॊं में कर्म के अलग अलग पक्षॊं की विवेचना की गई है। प्रस्तुत शोधपत्र में इसी बिन्दु पर परिचयात्मक रूप में प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है।