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International Journal of Sanskrit Research
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2021, Vol. 7, Issue 2, Part B

पतंजलि योग दर्शन मे अष्टांग योगः एक दृष्टि

मोनिका देवी एवं डा. वीरेंदर कुमार

प्राचीन समय से भारत मे यह विचार चला आया है कि हम साधना द्वारा ऐसी अनेको भौतिक और मानसिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकते हैं जो साधारण मनुष्य में नहीं पाई जाती, शारीरिक तथा मानसिक क्रियाओं के संयम से हमें दुःख से छुटकारा पाने मे सहायता मिलती है। योग दर्शन का महत्व दर्शन शास्त्रोें मे नहीं, अपितु हमारे जीवन से भी इसका घनिष्ठ सम्बन्ध है। ’’शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’’ अर्थात् धर्म की क्रिया के लिए शरीर माध्यम है। ’’स्वस्थ मन स्वस्थ शरीर मे रहता है।’’ इस मान्यता के आधार पर योग दर्शन में शरीर के महत्व पर बल दिया गया है। पुरुषार्थ की प्राप्ति के लिए शरीर, इन्द्रियों एवं चि को स्थिर करना भी आवश्यक है। योग वह अभ्यास है जिसके किए जाने पर न केवल भौतिक वरन् अध्यात्मिक शक्तियो की उपलब्धि की जा सकती है योग के प्रवर्तक पतंजलि माने जाते है। योग के अनुसार मोक्ष ही जीवन का अन्तिम लक्ष्य है।
Pages : 62-64 | 664 Views | 127 Downloads
How to cite this article:
मोनिका देवी एवं डा. वीरेंदर कुमार. पतंजलि योग दर्शन मे अष्टांग योगः एक दृष्टि. Int J Sanskrit Res 2021;7(2):62-64.

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