चतुर्विध आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को सभी आश्रमों का मूलाधार माना गया है। गृहस्थ आश्रम का मूल विवाह संस्कार है। प्रत्येक काल एवं समाज में संस्कारों में प्रमुख विवाह-संस्कार समादृत एवं सर्वस्वीकार्य रहा है। प्रत्येक आश्रम एवं पुरुषार्थ की उद्भावना का यह आधार है जो परमलक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है। आद्य-ऐतिहासिक काल से ही यह व्यवस्था एक सर्वव्यापी सार्वभौम सामाजिक संस्था के रूप में स्थापित रही है। प्रस्तुत शोधलेख में मनुस्मृति में वर्णित विवाह-प्रकार की चर्चा की गई है।