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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2021, Vol. 7, Issue 1, Part I

शब्दों के अर्थपरिवर्तन का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन

डाॅ. जयदेव

मानव अपने भावों को व्यक्त करने के लिए जिस सार्थक मौखिक एवं लिखित साधन को अपनाता है, वह भाषा है। विश्व के प्रायः सभी देशों में हो या प्रान्तों में कोई न कोई भाषा बोली जाती है और वही भाषा उस क्षेत्र विशेष के मानव के विचार-विनिमय का माध्यम बन जाती है। इस संसार की प्रायः सभी वस्तुएँ परिवर्तनशील हैं। अतः मानव द्वारा प्रयुक्त भाषा भी परिवर्तनशीला है। परिवर्तन का यह नियम स्वाभाविक है, किन्तु अज्ञानतावश और स्वार्थवश या विभिन्न कारणों से किया गया/हुआ परिवर्तन (विशेष रूप से शब्दों के अर्थों में) समाज में उत्पन्न विभिन्न भ्रान्तियों का कारण बन सकता है। वर्तमान में हिन्दी में प्रयोग किए जाने वाले शब्द लगभग नवदशमांश संस्कृत के हैं, जिन्हें हिन्दी में तत्सम शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है। किन्तु दोनों भाषाओं में एक ही शब्द के भिन्न-भिन्न अर्थ पाए जाने से तथा विभिन्न वर्गों, मज़हबों, सम्प्रदायों एवं बुद्धिजीवियों द्वारा पृथक्-पृथक् अर्थ-निर्धारण से जहाँ एक ओर समाज में विभिन्न प्रकार भ्रान्तियाँ व विशृंखलाएँ उत्पन्न हो रहीं हैं वहीं समाज के लोग वास्तविक अर्थ-ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। यह एक विचारणीय बिन्दु है कि हिन्दी भाषा में प्रयुक्त संस्कृत-शब्दों के मूल एवं वास्तविक अर्थ में कैसे परिवर्तन हुआ ? इसके पीछे क्या कारण रहे होंगे ?
अतः यह शोधपत्र हिन्दी भाषा में प्रयुक्त दैनिक जीवनोपयोगी कुछ प्रचलित संस्कृत-शब्दों को संस्कारहीन एवं अनर्थहीन होने से बचाने में अत्यन्त लाभदायक व उपयुक्त सिद्ध हो सकता है।
Pages : 494-497 | 529 Views | 54 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. जयदेव. शब्दों के अर्थपरिवर्तन का भाषा-वैज्ञानिक अध्ययन. Int J Sanskrit Res 2021;7(1):494-497.

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