शास्त्रोंमें प्रतिपादित विभिन्न विचारों एवं सिद्धान्तों का केन्द्रबिन्दु ‘लोकव्यवहार’ होता है। इस लोकव्यवहार में हमें द्विविध सत्ताएं दृष्टिगोचर होती हैं– चेतन एवं अचेतन। इन दोनों के पारस्परिक समन्वय से ही समस्त जागतिक क्रियाकलापों का सञ्चालन होता है। इन द्विविध सत्ताओं में चेतन सत्ता को मुख्य स्वीकार किया जाता है क्योंकि उसकी प्रेरणा एवं नियामकता में ही व्यवहार का सञ्चालन होता है। भारतीय दर्शन में चेतन सत्ता के लिए सामान्यत: ‘आत्मा’ शब्द का प्रयोग दृष्टिगत होता है। विभिन्न दार्शनिक सम्प्रत्ययों में आत्मा के स्वरूप के विषय में मतभेद हैं। न्याय-वैशेषिक दर्शन में ज्ञान को आत्मा का गुण माना जाता है जबकि जैन दर्शन में ज्ञान आत्मा का स्वरूप है।