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International Journal of Sanskrit Research
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2021, Vol. 7, Issue 1, Part H

शाकुन्तलम् का अभिज्ञान अंक

दीपक कालिया

कविकुलगुरू कालिदास विरचित सुप्रसिद्ध नाटक अभिज्ञानषाकुन्तलम् के सात अंकों में षष्ठ अंक वस्तुतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। इसे अभिज्ञान अंक कहा जा सकता है। क्योंकि नाटक के नामकरण को सार्थक करने वाले इस अंक की घटनाओं की नाट्यषास्त्र की दृष्टि से विशेष भूमिका है। अभिज्ञानषाकुन्तलम् के षष्ठ अंक में चेटियों द्वारा वसन्तऋतु का वर्णन, सानुमति अप्सरा का प्रसंग और मातलि द्वारा विदूषक के निग्रहण का वृतान्त “प्रकरी“ नामक अर्थप्रकृति के अन्तर्गत है। अंगूठी की प्राप्ति होने पर सब विघ्न दूर हो जाते हैं। सानुमति के “देवा एव तथानुष्ठास्यन्ति यथाचिरेण धर्मपत्नी भर्ताभिनन्दिष्यति“ वचन से निष्चित प्राप्ति सूचित होती है यह फलागम की सूचना एवं शकुन्तला का अभिज्ञान इसी अंक के माध्यम से होता है। प्रायः संस्कृत साहित्य में काव्यों का नामकरण उनकी विषेष घटनाओं के आधार पर किया गया है और नाटक में जिस अंक में उस घटना का वर्णन होता है वह अंक विषिष्ट माना जाता है। “अभिज्ञानम् च तत् शाकुन्तलम् अभिज्ञानशाकुन्तलम्“ इस व्याख्या के अनुसार अभिज्ञान से अंगूठी और शाकुन्तल से शकुन्तला सम्बन्धी अर्थ ग्रहण किया जाए तो ऐसी स्थिति में अभिज्ञान शाकुन्तल का अर्थ होगा- “शाकुन्तला की पहचान“। इस अभिज्ञानशाकुन्तलम् में शकुन्तला की पहचान षष्ठ अंक में होती है अतः षष्ठ अंक की महता सर्वाधिक है। प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देष्य शाकुन्तलम् के षष्ठ अंक को अभिज्ञान अंक कहते हुए अन्य अंकों की अपेक्षा नाट्य कौषल एवं नामकरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण सिद्ध करने का प्रयास किया गया है।
Pages : 441-443 | 1141 Views | 597 Downloads
How to cite this article:
दीपक कालिया. शाकुन्तलम् का अभिज्ञान अंक. Int J Sanskrit Res 2021;7(1):441-443.

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