वानर जाति की वाल्मीकिरामायण में महत्वपूर्ण भूमिका है। किष्किन्धा काण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक इस जाति का राम से प्रतिच्छाया के समान संग रहा है। वानरों की सहायता के बिना राम का रावण को युद्ध में पराजित करना असम्भव सा प्रतीत होता है। परन्तु लोक में सामान्य लोग एक कवि की अलंकारिक भाषा व काव्यशैली का ज्ञान न होने से रामायणवर्णित वानरों को वानर (बन्दर) एक पशु विशेष समझ बैठे इसलिए वर्तमान परिस्थितियों में वानर जाति का वास्तविक स्वरूप प्रकट करना अपेक्षित है।