गजानन-संयोजन विषयक वर्णन शिव और ब्रह्मवैवर्तपुराणों में प्राप्त होता है। शिवपुराणानुसार शिव ने कहा कि लोकमंगलार्थ ही उन्हें कार्य करना चाहिए, अतः उन सबको उत्तर दिशा में गमन करने पर सर्वप्रथम जो प्राणी मिले उसका सिर लाकर गणेश के शरीर के साथ योजित करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्तपुराण में गणेश को गजानन नाम से अभिहित किया गया है। इस पुराण में श्री गणेश में गजमुख को योजित करने का कारणोल्लिखित है। नारद ने निज मन में संशय रखते हुए नारायण से प्रष्न किया कि जब हरि अंष की षिवसुतरूपेण प्रादुर्भूति हुई थी और तब उसके बुद्धिवैभव, तेज और पराक्रम में भी हरितुल्य होने पर भी उस त्रिलोकीस्वामीतनय में गजानन के योजित होने का कारण क्या था? नारद ने नारायण से आगे कहा कि नानाविध जन्तुओं के विद्यमान होने पर भी हाथी के मुख के संयोजन का कारण जानने के लिए वह अत्यंत उत्सुक थे।