स्तोत्र काव्य अनुराग तथा वैरागय का संगम है। आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से यह काव्य लोकप्रिय है। इनके रचियता अपने आराध्य की महत्ता तथा अपनी दीनता का प्रदर्शन करते है संस्कृत भक्त कवियों ने नैसर्गिक रूप से उदगारों को व्यक्त किया है क्योंकि भक्ति-भाव से आप्लावित होकर भक्त अपना कोमल हृदय भगवान को समर्पित करता है। प्रस्तुत शोध-लेख के माध्यम से भगवान और भक्त के मध्य सेतु रुप स्तोत्र को प्रकाश में लाने का प्रयास किया गया है।