विश्व में भारतीय वैदिक साहित्य के इतिहास में वेदों का स्थान सर्वोपरी है। अपने प्रतिभा चक्षु के सहारे साक्षात्कृतधर्मा ऋषियों के द्वारा अनुभूत अध्यात्मशास्त्र के तत्त्वों की विशाल विमल शब्दराशि का ही नाम 'वेद' है। सम्पूर्ण वैदिक संस्कृत में वेद वाङ्मय सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ हैं। वेद शब्द ‘विद्’ धातु ‘घञ्’ प्रत्यय से निष्पन्न होता है। जिसका अर्थ ज्ञान अर्थात् ज्ञान राशि अथवा ज्ञान का भंडार होता है । वेद हैं - ऋक्, यजु, साम और अथर्व ।
यज्ञ: वैदिक धर्म की विशेषता यज्ञ है । ऋग्वेद - काल में यज्ञ शब्द यजन , पूजन या उपासना के सामान्य अर्थ में भी गया है, किंतु बाद में अग्नि में आहुति देने के साथ अनेक प्रकार की क्रियाओं से युक्त अनुष्ठान को ही यज्ञ समझा जाता रहा है ।
सवन: सवन का प्रारंभिक अर्थ था सोम, सोम को निचोड़ कर उसका रस निकालना। फिर यह सोम की आहुति के लिए आने लगा, जो दिन में तीन बार दी जाती थी। प्रातःसवन, माध्यन्दिन सवन और सायं सवन। बाद में यह यज्ञ या हविर्विशेष का वाचक बन गया।
प्रातःसवन
माध्यन्दिन सवन
सायं सवन
सोमयाग: सोमयाग का संक्षिप्त स्वरूप सोमयाग में सोमलता को कूट कर रस निकाल कर उस रस को ग्रहों से ग्रहण के लिए इन्द्रवायू मित्रावरुण आदि देवताओं को निर्देश किया जाता है - 'ऐन्द्र वायवं गृह्णाति' 'मैत्रावरुणं गह्णाति' आदि । तत्तदेवता के लिए ग्रहों से सोमरस को ग्रहण कर होम किया जाता है । सोमरस ग्रहण के लिए जो देवता निर्दिष्ट हैं वे ही सोमयाग के देवता हैं ।