यह कहते हुये परम प्रसन्नता एवं गर्व का अनुभव हो रहा है कि रामायण विश्वसाहित्य का आदिकाव्य है। रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। ग के अनुसार समय को चार युगों में बाँटा गया है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एवं कलियुग। जिसमें एक कलियुग का वर्ष- 4,32,000, द्वापर का- 8,64,000, त्रेता का- 12,96,000 तथा सतयुग का- 17,28,000 होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम 8,70,000 वर्ष सिद्ध होता है। बहुत से विद्वान् इसका तात्पर्य ई पू.- 8000 से लगाते हैं। अन्य विद्वान् इसे इससे भी पुराना मानते हैं।
महर्षि वाल्मीकि के मानस सागर से निःसृत रामायण रूपी ज्ञानगङ्गा में मानवीय सभ्यता के सभी पक्षों का उदात्त चित्रण इसमें समाविष्ट है। इस ज्ञान-विज्ञान की सरिता में अवगाहन कर कोई भी सभ्यता अपनी आत्मिक, बौद्धिक एवं मानसिक मलिनता को दूर कर सकती है। किसी सभा, समुदाय या समाज में उठने बैठने तथा रहने योग्य मनुष्य को सभ्य कहा जाता है, उसी के भाव को सभ्यता कहते हैं।
सभ्यता हमारा बाह्य रहन-सहन, खान-पान, आचरण, भौतिक-विकास पारिवारिक सामाजिक संस्कार आदि का परिचायक होता है। संस्कृति हमारी आन्तरिक सोच ज्ञान-विज्ञान आदि प्रेरक तत्त्व को बताती है। वैसे तो आन्तरिक ही बाह्य आचरण का कारण होता है। रामायण मानवीय सभ्यता के विकास में परम सहयोगी है तथा सदा रहेगी।