ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद ईश्वरीय ज्ञान है जिसे सर्वव्यापक, सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को दिया था| ईश्वर प्रदत्त यह ज्ञान सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है। वेद सभी मनुष्यों के लिए यज्ञ करने का विधान करते हैं। ऋग्वेद के मंत्र में 'स्वाहा यज्ञं कृणोतन'1 कहकर ईश्वर ने स्वाहापूर्वक यज्ञ करने की आज्ञा दी है ऋग्वेद के मन्त्र में 'यज्ञेन वर्धत जातवेदसम्2' कहकर यज्ञ से अग्नि को बढ़ाने की आज्ञा है। इसी प्रकार यजुर्वेद के मन्त्र में 'समिधाग्निं दवस्यत धृतैर्बोधतातिथिम्'3 कहकर समिधा से अग्नि को सूचित करने व घृत से उस अग्निदेव अतिथि को जगाने की आज्ञा है। 'सुसमिद्धाय शोचिषे घृतं तीव्रं जुहोतन'4 के द्वारा आज्ञा है कि सुप्रदीप्त अग्नि ज्वाला में तप्त घत की आहुति दो।5