नयी हिन्दी कहानी विधा में दृष्टि मूलक नवीनता का सर्वेक्षण
डॉ0 विनीता रानी
इस युग का आरम्भ स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् होता है। प्रेमचन्द्र युगीन कहानीकारों का आग्रह विधितापूर्वक साहित्य सृजन की ओर रहा। उन्होनें अपनी रचनाओं में सामाजिक मान्यताओं और आदर्शों का प्रतिरूपण किया, किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् यकायक जीवन मूल्यों में परिवर्तन प्रतीत होने लगा। परिणामस्वरूप समाज के दो रूप सामने आये - एक तो वह जिसने स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा था और देखा था। दूसरा वह जिसने स्वतन्त्रता प्राप्ति का विवरण पढ़ा या सुना था। इसी युग में सन् 1950 के आसपास हिन्दी की नयी कहानी अपनी नयी सजधज के साथ कहानीकारों की लेखनी में प्रविष्ट हुई। नयी कहानी के प्रर्वतकों में मोहन राकेश का नाम अविस्मरणीय है। उनका ’’जानवर और जानवर’’ कहानी संग्रह (सन् 1948 में प्रकाशित हुआ) अर्थबोध की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। इस आन्दोलन में राजेन्द्र यादव ने ’’लक्ष्मी कैद है’’ संग्रह के माध्यम से सहयोग दिया।