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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2020, Vol. 6, Issue 5, Part F

‘वैदेहीचरितम्’ में उपमा का सौन्दर्य

डाॅ. भारती निश्छल

‘वैदेहीचरितम्’ पंडित रामचन्द्र मिश्र के द्वारा रचित ऐसा संस्कृत-महाकाव्य है, जिसमें कवि की भावयित्री और कारयित्री-दोनों ही प्रतिमाओं का प्रकाश विकीर्ण हुआ है। कवि ने काव्य की आत्मा के साथ-साथ उसके शरीर-शब्द और अर्थ-को भी सौन्दर्य से परिपूर्ण बनाने में सफलता प्राप्त की है। काव्य-सौन्दर्य के वर्द्धक उपादान को काव्यशास्त्र में ‘अलंकार’ कहा गया है और अलंकारों में उपमा को ‘अलंकारशिरोरत्न’, ‘काव्य-सम्पदा का सौन्दर्य’ तथा कविकुल के लिए माता के समान उपकारी बताया गया है। इस अलंकार की अनेक मनोहर छवियाँ ‘वैदेहीचरितम्’ में दृष्टिगोचर होती हैं।
इस कृति में मिथिला को ‘त्रिलोकीतिलक’ के समान, यहाँ के उद्यान को कामदेव के मन्दिर के समान उद्यान के चम्पक-पुष्पों को दीपमाला के समान तथा कोयलों की कूक को वेदपाठ के समान बताया गया है। इसी प्रकार, फालाग्र भाग से प्रकट हुई सीता का रंग चम्पक पुष्प के समान, उसकी नाक तिल-पुष्प के समान, उसके हाथ प्रकाशमान कमल के समान और वह स्वयं पृथ्वी को प्रकाशित करती चन्द्रकला के समान प्रतीत होती थी। सम्पूर्ण कृति में कवि का उपमा-प्रयोग हृदयावर्जक और मौलिक उद्भावनाओं से युक्त है।
Pages : 323-326 | 828 Views | 115 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ. भारती निश्छल. ‘वैदेहीचरितम्’ में उपमा का सौन्दर्य. Int J Sanskrit Res 2020;6(5):323-326.

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