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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2020, Vol. 6, Issue 3, Part B

कालिदास के रूपकों में प्रकृति चित्रण

कृष्ण कुमार शर्मा

सरस्वती के वरद्पुत्र कविकुल शिरोमणि, महाकवि कालिदास संस्कृत साहित्य जगत् के देदीप्यमान नक्षत्र के रूप में प्रकाशित हैं। वे न केवल उच्च कोटि के साहित्यकार हैं अपितु एक अद्वितीय नाटककार भी हैं। उनके द्वारा विरचित अभिज्ञानशाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् एवं मालविकाग्निमित्रम् रूपक उनकी नाट्य कला में श्रेष्ठता के प्रमाण हैं। कालिदास काव्य के किसी भी कौशल में न्यून नहीं है जैसे छन्द, अलंकार, गुण, रीति, रस विषयवस्तु आदि। किन्तु कालिदास ने प्रकृति चित्रण से जो मनोरम रचना की है, वह अनुपम है। उनके रूपकों में प्रकृति चित्रण में इतनी सजीवता, रमणीयता, भव्यता एवं स्वभाविकता है जो पाठकों एवं दर्शकों को सहज ही आकृष्ट कर लेती है। उनके नाटकों में ऐसा कोई अंक नहीं है जिसमें प्रकृति चित्रण न किया हो। वे प्रकृति के पटु पुजारी है। उनके तीनों नाटकों के अनुशीलन से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है। कालिदास ने प्रकृति का मानवीकरण कर दिया है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में आद्योपान्त कोमल एवं सरस प्रकृति का सजीव चित्रण है। उनकी नायिका शकुन्तला वस्तुतः प्रकृति कन्या ही है। विक्रमोर्वशीयम्् की नायिका उर्वशी को जब शाप मिलता है तो वह लता बनती है। मालविकाग्निमित्रम् में प्रमदवन आदि का रमणीय वर्णन है।
Pages : 132-134 | 461 Views | 108 Downloads


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How to cite this article:
कृष्ण कुमार शर्मा. कालिदास के रूपकों में प्रकृति चित्रण. Int J Sanskrit Res 2020;6(3):132-134.

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