महाकवि भर्तृहरि की महनीय कृति ‘वैराग्यशतक’ शतक काव्यों का प्रतिनिधि ग्रंथ है। सरस, सरल, स्वाभाविक एवं प्रवाहपूर्ण भाषाशैली में रचित यह ग्रंथ संसार की निस्सारता को प्रकट करता हुआ वैराग्य को श्रेष्ठ व कल्याणकारी सत्य एवं तथ्य के रूप में स्वीकार करता है। वैराग्य का विवेचन होने से यहाँ शान्तरस को अघõीरस के रूप में निरूपित किया गया है। भाषा भावानुकूल है तथा कवि ने माधुर्यगुण एवं वैदर्भी रीति का आश्रय लिया है। प्रस्तुत शोधलेख के माध्यम से काव्यगत उक्त तत्त्वों से परिचित करना ही मुख्य उद्देश्य है।