अध्यात्मरामायण में भगवान् भूतभावन एवं भगवती पार्वती के संवाद रूप में रामचरित का वर्णन दृष्टिगोचर होता है। राम जैसे युगपुरुष का इस भूधरा पर आविर्भाव जीव एवं जगत् को सहज गति को दुर्जनों के प्रकोप से बचाने हेतु होता है। भारतीय मनीषा के लिए राम एक भाव अवधारणा के स्तर पर सहज नहीं है, अपितु उनके ऐतिहासिक अस्तित्व और उसके माध्यम से चरितार्थ होने वाले मूल्यों को निरन्तर महत्व देते आये हैं।
अध्यात्मरामायण में नैतिकता का दर्शन प्रत्येक काल पर परिलक्षित होता है। वस्तुतः जीवन की नैतिक दृष्टि जो समाज को सुव्यवस्थित एवं मर्यादित करती है। वह राम के द्वारा सर्वत्र चरितार्थ होता है। अतः अध्यात्म रामायण हमें इस दिशा के द्वारा सर्वत्र चरितार्थ होता है। अतः अध्यात्मरामायण हमें इस दिशा में चिन्ह करने की प्रेरणा देता है।