याज्ञवल्क्यस्मृति में एक सुदृढ़ राज्य की परिभाषा प्राप्त होती है। यहां राज्य को एक सजीव रचना के रूप में स्वीकार किया गया है जो राज्य को सजीव एकात्मक शासन-व्यवस्था के रूप में मान्यता प्रदान करता है। याज्ञवल्क्य इसे सात प्रकृति अर्थात् सप्तांग के रूप में निरूपित करते हैं। राजा के कार्यों और उसके द्वारा स्थापित शासन-व्यवस्था के आधार पर सप्तांगों का विवेचन इस शोध-पत्र में किया गया है। राज्य के सर्वांगीण विकास के लिए इन सातों अंगों का सुदृढ़ होना आवश्यक है। याज्ञवल्क्य ने राज्य-शासन में इनकी एक दूसरे के प्रति अंतरनिर्भरता पर बल दिया है।