वैज्ञानिक दृष्टिकोण में संस्कृत भाषा का विज्ञान में महत्त्व
Dr. Arun Kumar Porel
आज भारत कई बड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है और ये सिर्फ विज्ञान के द्वारा ही सुलझाई जा सकती है। अगर हमें विकास करना है तो हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण को देश के कोने-कोने तक पहुंचाना होगा। यहॉ विज्ञान से मतलब भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीवन विज्ञान से नही है बल्कि पूर्ण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से है। हमें लोगों को तार्किक व प्रश्नाकूल बनाना होगा और अंधविश्वासों व खोखली रीती-रिवाजों को खत्म करना होगा। भारतीय संस्कृति के आधार में संस्कृत भाषा है। संस्कृत भाषा के बारें में एक बड़ी भ्रान्ति ये है कि यह केवल मंदिरों या धार्मिक आयोजनों में मंत्रोच्चार के लिए है। जबकि यह संपूर्ण संस्कृत साहित्य के 5 प्रतिशत से भी कम है। संस्कृत साहित्य के 95 प्रतिशत से अधिक हिस्से का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। जबकि इसका संबंध दर्शन, न्याय, विज्ञान, साहित्य व्याकरण, ध्वनि-विज्ञान निर्वचन आदि से है। यहॉ तक कि संस्कृत स्वतंत्र चिन्तकों कि भाषा थी जिन्होंने अपने समय में कई महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़े किए और जिन्होंने विभिन्न विषयों पर विभिन्न विचार व्यक्त किए। वास्तव में प्राचीन भारत में संस्कृत हमारे विज्ञानिकों कि भाषा थी। निःसंदेह आज हम विज्ञान के क्षेत्र में दूसरे देशों कि तुलना में पीछे है, लेकिन एक समय था जब भारत पूरे विश्वभर में अग्रणी था।