सम्पूर्ण विश्व के समस्त पदार्थ एवं द्रव्यों के संयोग तथा एकत्र धारण से जीवन का निर्वाह होता है। इस निर्वाह के लिये ही धर्म का उद्भव है। सूर्य, चन्द्रमा, तारामण्डल और पृथ्वी आदि पदार्थ परस्पर एक-दूसरे के उपकार्य-उपकारक भाव से विधृत हैं और वे परमेश्वर द्वारा निर्दिष्ट अपने-अपने कार्यों करने में समर्थ होते हैं। मानवों को अपने उत्कर्ष के साधन के लिये समाज की अपेक्षा है।