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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2019, Vol. 5, Issue 6, Part B

जीवन की सोद्देश्यता- पुरुषार्थ सिद्धि

डॉ वन्दना रुहेला

आधुनिक समय में मानव नित्य प्रति भौतिक उन्नति में उत्तरोत्तर प्रगति करता जा रहा है, किंतु जीवन के लक्ष्यों की प्राप्ति में उसकी अपूर्णता बनी हुई बनी हुई है। जीवन में भौतिक उत्कर्ष को प्राप्त करके भी उसके हृदय की व्याकुलता उसकी अपूर्णता को द्योतित करती है। इसका कारण यह है कि वह जीवन के शरीरपक्ष के प्रति तो सजग है किंतु, यह भौतिक शरीर जिस आत्मा से, चौतन्य से संचालित होता है उसकी ओर अर्थात् आत्मोपलब्धि की ओर उसका ध्यान नहीं है । प्राचीन भारतीय जीवन पद्धति पुरुषार्थ चतुष्टय के माध्यम से ऐहिक और पारलौकिक अभ्युदय की प्राप्ति के मार्ग को प्रदर्शित करके जीवन की सोद्देश्यता को सिद्ध करती है। त्रिवर्ग को सम्यक् प्रकार से प्राप्त करके जीवन के चरम लक्ष्य मोक्ष का मार्ग स्वतः प्रशस्त हो जाता है। पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति से जीवन के भौतिक और आध्यात्मिक लक्ष्यों की प्राप्ति में मानव जीवन की पूर्णता होती है । प्रस्तुत शोध पत्र पुरुषार्थ सिद्धि के माध्यम से जीवन की सोद्देश्यता पर एक विचारसरणि प्रस्तुत कर रहा है। प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध जीवन के उद्देश्य और पुरुषार्थ सिद्धि से जीवन को सार्थक करने के चिंतन को प्रस्तुत यहां प्रदर्शित किया गया है।
Pages : 107-110 | 537 Views | 185 Downloads
How to cite this article:
डॉ वन्दना रुहेला. जीवन की सोद्देश्यता- पुरुषार्थ सिद्धि. Int J Sanskrit Res 2019;5(6):107-110. DOI: 10.22271/23947519.2019.v5.i6b.1712

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