किसी à¤à¥€ समाज की सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ का पà¥à¤·à¥à¤Ÿ परिचायक उसकी विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सामाजिक संरचनाà¤à¤ और उससे à¤à¥€ अधिक उन संरचनाओं के मूल में अवसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ समाज की मूलà¥à¤¯ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ होती है।
ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ के समय से ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤• सà¤à¥à¤¯ और मानवीय मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर आधारित सà¥à¤¸à¤‚गठित समाज रहा है, अतः वैदिक साहितà¥à¤¯ में ही विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ सामाजिक संरचनाओं के मूलà¤à¥‚त विचारों, आदरà¥à¤¶à¥‹à¤‚ और मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¯à¤¾ दिखाई देता है।
इस पतà¥à¤° में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ के वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त, पारिवारिक, सामाजिक और आरà¥à¤¥à¤¿à¤• जीवन से समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§à¤¿à¤¤ आदरà¥à¤¶à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ वैदिक साहितà¥à¤¯ के सनà¥à¤¦à¤°à¥à¤ में किया जाà¤à¤—ा।