किसी भी समाज की सभ्यता का पुष्ट परिचायक उसकी विभिन्न सामाजिक संरचनाएँ और उससे भी अधिक उन संरचनाओं के मूल में अवस्थित समाज की मूल्य व्यवस्था होती है।
ऋग्वेद के समय से ही भारत एक सभ्य और मानवीय मूल्यों पर आधारित सुसंगठित समाज रहा है, अतः वैदिक साहित्य में ही विभिन्न सामाजिक संरचनाओं के मूलभूत विचारों, आदर्शों और मूल्यों का स्वरूप स्पष्टतया दिखाई देता है।
इस पत्र में व्यक्ति के व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन से सम्बन्धित आदर्शों का वर्णन वैदिक साहित्य के सन्दर्भ में किया जाएगा।