अथर्ववेद में राजनीति शास्त्र के महत्त्वपूर्ण अंग पर वार्ता हुई है। अथर्ववेद में राष्ट्र की सर्वश्रेष्ठता प्रतिपादित की गई है। राष्ट्र एवं उसके रक्षक राजा का वर्णन कई सूक्तों में वर्णित है। राष्ट्र, राजा एवं राजकृत का वर्णन अथर्ववेद में सर्वत्र है। राजा राष्ट्र की महिमा को बढ़ाने वाला एवं सम्पन्न करने वाला होता है। राजा को प्रजा की आत्मा एवं शुभचिन्तक बताया गया है।
राष्ट्र की सर्वोच्च सत्ता राजा होता है जो प्रजा हित में अपना कार्य करता है। राजा राष्ट्र रिपुओं को अपने पौरूष से पराजित कर देता है, साथ ही राष्ट्र की प्रतिष्ठा बढ़ाता है। अथर्ववेद में राजन् एवं राष्ट्र की मूल अवधारणा का साक्षात्कार होता है।