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International Journal of Sanskrit Research
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International Journal of Sanskrit Research

2019, Vol. 5, Issue 2, Part A

छन्दः समीक्षा का अवष्टम्भ सिद्धान्त एवं तिलकमञ्जरी में इसका निदर्शन

Dr. Vijay Garg

वेद-वेदांग, न्याय, मीमांसा, साहित्य, वेदान्त आदि के अनन्य विद्वान् पं. मधुसूदन ओझा का जन्म बिहार के प्रांत के मुजफ्फरपुर जिले में विक्रमी संवत 1923 में हुआ। उन्होंने वेद के गम्भीर व कठिन रहस्यों को विद्वानों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रण लिया था जिससे सामान्य जन भी वेद के ज्ञान से लाभान्वित हो सके। छन्दों का ज्ञान सभी को सरलता से हो सके इसके लिए पं. मधुसूदन ओझा ने छन्दः समीक्षा नामक ग्रंथ का प्रणयन किया। छन्द में गति का महत्वपूर्ण स्थान होता है। कम या अधिक गति छन्द की लय तथा अर्थ को प्रभावित करती है। इसी गति के निरूपण के प्रसंग में पं. ओझा ने विश्राम स्थानों (यति) का वर्णन किया है जिसे उन्होंने अवष्टम्भ कहा है। छन्द की गति के अनुरूप यह अवष्टम्भ पांच प्रकार का होता है- अयति, यति, विरति, विच्छेद, अवसान। प्रस्तुत शोधप्रत्र में इन पांचों प्रकार के अवष्टम्भों का वर्णन कर, धनपाल (10 वीं शताब्दी) द्वारा रचित रसमयी कथा तिलकमञ्जरी से सुंदर उदाहरणों को प्रस्तुत कर उसमें पं. ओझा प्रोक्त अवष्टम्भों को इन उदाहरणों पर घटा कर दिखाया गया है।
Pages : 60-63 | 686 Views | 147 Downloads


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How to cite this article:
Dr. Vijay Garg. छन्दः समीक्षा का अवष्टम्भ सिद्धान्त एवं तिलकमञ्जरी में इसका निदर्शन. Int J Sanskrit Res 2019;5(2):60-63.

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