भारतीय परम्परा में वेद को सदा से अपौरुषेय माना जाता रहा है एवं सभी ऋषि-मुनि, आचार्य एवं विचारक सदैव से ही वेद को ईश्वर की वाणी मानते आये हैं, उनके अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ में मानव की उत्पत्ति होने पर उसके मार्गदर्शन तथा सर्वतोमुखी उन्नति कल्याण एव सुख-समृद्धि के लिये सर्वव्यापक एवं सर्वशाक्तिमान ईश्वर ने स्वंय वेदों का उपदेश दिया था तथा परमात्मा का ज्ञान होने के कारण परमात्मा की भांति ही वेद अनादि और नित्य हैं। मानव की भौतिक तथा आध्यात्मिक उन्नति और अभ्युदय के लिये सभी प्रकार का आवश्यक ज्ञान-विज्ञान वेदों में निहित है।