हालकृत प्राकृतकाव्य सतसई की भाँति संस्कृत-साहित्य के शृघõारप्रधान मुक्तककाव्यों में अमरुशतक आठवीं सदी की एक अन्यतम कृति है। महाकवि अमरुकरचित इस शृघõारिक काव्य में भाषा, भाव, रस, गुण, अलंकार छन्दादि काव्यसौन्दर्याधायक तत्त्वों का सुन्दर समायोजन पदे-पदे दृष्टिगत होता है । कवि की रचनाशैली वैदर्भी है । भाषा सरल, सहज एवं माधुर्यगुणयुक्त है । संयोग एवं विप्रलम्भ शृघõार दोनों प्रकार के शृघõार का दर्शन यहाँ होता है । शब्दालंकार और विशेष रूप से अर्थालंकार के प्रयोग से शृघõारप्रधान यह काव्य अत्यन्त रमणीय हो गया है । शार्दूलविकीडित और ड्डग्धरा जैसे जटिल छन्दों के प्रयोग से भी रसप्रवाह में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है। प्रस्तुत शोध-लेख के माध्यम से अमरुशतक में निबद्ध काव्यसौन्दर्यधायक एवं काव्यशोभाकारक उपर्युक्त तत्त्वों से सहृदय को परिचित करना ही उद्देश्य है ।