‘‘यावत सà¥à¤¥à¤¾à¤¸à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤à¤¿ गिरयः सरितशà¥à¤š मही तले।
तावदॠरामायण कथा लोकषॠपà¥à¤°à¤šà¤°à¤¿à¤·à¥à¤¯à¤¤à¤¿à¥¤à¥¤
रामायणकालीन समाज को मानव जीवन की सामाजिक राजनैतिक धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का आदरà¥à¤¶ कहा जा सकता है। ततà¥à¤•ालीन लोग कलातà¥à¤®à¤• अà¤à¤¿à¤°à¥‚चि समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ थे। वैदिक यà¥à¤— की सरल à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• कलातà¥à¤®à¤• पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ रामायण काल में आकर निःसनà¥à¤¦à¥‡à¤¹ ही à¤à¤• उचà¥à¤šà¤¤à¤° सà¥à¤¤à¤° तक पहà¥à¤à¤š गई। वालà¥à¤®à¥€à¤•ि ने चितà¥à¤°à¤•ला वासà¥à¤¤à¥à¤•ला, संगीत, नृतà¥à¤¯à¤•ला आदि के विषय मे परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ सामगà¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की है। वासà¥à¤¤à¥à¤•ला के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में रामायणकालीन à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ समाज ने आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• पà¥à¤°à¤—ति कर ली थीं। महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•ि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ नगरों दà¥à¤°à¥à¤—ो तथा पà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¾à¤¦à¥‹à¤‚ के वरà¥à¤£à¤¨ से यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ है कि उस समय वासà¥à¤¤à¥ विदà¥à¤¯à¤¾ का à¤à¤• वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤µà¤‚ उनà¥à¤¨à¤¤ रूप सà¥à¤¥à¤¿à¤° हो चà¥à¤•ा था।
वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· की समृदà¥à¤§ और विेकसित शाखा है। इन दोनों में अंग अङगी à¤à¤¾à¤µ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ है। जैसे शरीर का अपने विविध अंगों के साथ सहज और अटूट समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ होता है। ठीक उसी पà¥à¤°à¤•ार जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· शासà¥à¤¤à¥à¤° का अपनी सà¤à¥€ शाखाओं सामà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤°, सà¥à¤µà¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤µà¤‚ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° के साथ समà¥à¤¬à¤¨à¥à¤§ है।
जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· शासà¥à¤¤à¥à¤° का उलà¥à¤²à¥‡à¤– वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° में उसकी सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ महतà¥à¤¤à¤¾ बताने के लिठकिया गया है। जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· à¤à¤µà¤‚ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° में इतनी निकटता का कारण यह है कि दोनों का उदà¥à¤à¤µ वैदिक संहिताओं से हà¥à¤† है, दोनों का विकास à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जीवन दरà¥à¤¶à¤¨ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ रहा है। दोनों शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का लकà¥à¤·à¥à¤¯ मानवमातà¥à¤° को सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ और सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ देना है। दोनों ही शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¥à¤¯ विषय जीवन में घटित होने वाला घटनाकà¥à¤°à¤® है।
वालà¥à¤®à¥€à¤•ि रामायण का संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ परिचय
महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•ि दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विरचित रामायण आदि महाकावà¥à¤¯ के नाम से जाना जाता है। वेदों के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® जिस अनà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤ª वाणी का पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤¨ हà¥à¤†, वह निःसनà¥à¤¦à¥‡à¤¹ आदिमहाकावà¥à¤¯ है। महरà¥à¤·à¤¿ वालà¥à¤®à¥€à¤•ि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विरचित होने के कारण इसे आरà¥à¤·à¤•ावà¥à¤¯ à¤à¥€ कहा जाता है। ’’वेदोऽखिलो धरà¥à¤®à¤®à¥‚लम’’ इस कथन के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वेद सà¥à¤µà¤°à¥‚प रामायण à¤à¥€ धरà¥à¤® का मूल है।
संसà¥à¤•ृत वाऽमय में रामायण की गणना विशिषà¥à¤Ÿ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ के रूप में की जाती है। रामायण का वणà¥à¤°à¥à¤¯ विषय विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ तथा दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•ाण वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• है। इस महाकावà¥à¤¯ की कथा वसà¥à¤¤à¥ सात काणà¥à¥œà¥‹à¤‚ में विà¤à¤•à¥à¤¤ है-
01- बालकाणà¥à¥œ
02- आयोधà¥à¤¯à¤¾ काणà¥à¥œ
03- अरणà¥à¤¯ काणà¥à¥œ
04- किषà¥à¤•िकनà¥à¤§à¤¾ काणà¥à¥œ
05- सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° काणà¥à¥œ
06- यà¥à¤¦à¥à¤§ काणà¥à¥œ
07- उतà¥à¤¤à¤° काणà¥à¥œ
इन काणà¥à¥œà¥‹à¤‚ में कवि ने मानव जीवन के विविध पकà¥à¤·à¥‹à¤‚ को अंकित किया है। कवि ने राम राजà¥à¤¯ के माधà¥à¤¯à¤® से आदरà¥à¤¶ राजà¥à¤¯ का रूव पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पहलू को सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ किया है।