अधिकांश लोगों की यह मान्यता है कि भौतिक विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, वास्तु विज्ञान आदि सभी बुद्धि प्रदाय विज्ञान पाश्चात्य देशों की देन है। परंतु भारत के प्राचीन तथा अर्वाचीन वैज्ञानिकों ने इस धारणा को निर्मूल साबित कर दिया है। आयुर्वेद वह भारतीय आयुर्विज्ञान है जिसका संबंध मानव के शरीर को निरोगी रखने और रोग हो जाने पर उन रोगों से मुक्त करने और आयु में वृद्धि करने से संबंधित है।
ऋग्वेद व अथर्ववेद में तो चक्षुप्राप्ति सूक्त (ऋग्, 10/15/8), गर्भरक्षण सूक्त (ऋग्, 10/1 /62), सर्वाङ्गरोग नाशक सूक्त (ऋग्, 10/152) आदि सूक्त इस बात के प्रबल प्रमाण हैं कि शरीर संरचना, विभिन्न रोगों और उन्हें दूर करने के लिए विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का ज्ञान वैदिक ऋषियों को था। और वैदिक काल के बाद पौराणिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी।
सामान्य व्यक्ति निरोगी और दीर्घायु होना चाहता है। जन सामान्य से संबंधित होने के कारण आयुर्वेद का वर्णन अत्यंत सरल भाषा में पुराणों में होना स्वाभाविक ही है।प्राकृतिक चिकित्सा का प्रचार प्रसार पुराणों में कथाओं तथा संवादों के माध्यम से किया गया।विभिन्न पुराणों में अनेक अनेक औषधीयों के साथ-साथ जल चिकित्सा वायु चिकित्सा सूर्य चिकित्सा मंत्र चिकित्सा आदि अनेक प्रकार की चिकित्सा- पद्धतियों का भी विस्तृत वर्णन मिलता है शोध पत्र का मुख्य लक्ष्य जन सामान्य को पुराणों में वर्णित आयुर्विज्ञान के प्रति जागरूक करना है।