प्रस्तुत शोध पत्र में ‘‘अध्यात्म रामायण में वर्णित ऋषि आश्रम‘‘ का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
पूर्वकाल में ऋषि, मुनि वनों एवं पर्वतों में तप करने तथा निवास करने हेतु जिन स्थलों में रहा करते थे उन्हे ही तपोवन या आश्रम कहा जाता था। इन आश्रमों में ऋषि मुनीलोग जप-तप, ध्यान, यजन, हवन इत्यादि किया करते थे। इनमें से कुछ आश्रम गुरूकुल भी हुआ करते थे। जहां दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। प्रकृति के बीच बसे हुए ये आश्रम अत्यंत रमणीय होते थे। इन्हीं आश्रमोें में ज्ञानी ऋषि मुनि, धर्म कर्म के नियमों को बनाया करते थे, मूलरूप में ये आश्रम ही भारतीय संस्कृति के नियामक हुआ करते थे। अध्यात्म रामायण में भी ऋषि आश्रमों का वर्णन है जो इस प्रकार है-