वर्तमान युग में समाज, धर्म और दर्शन की व्याख्या मनुष्य के लिए ग्राह्य होने के साथ-साथ भारतीयता के आत्म-गौरव की परिचायिका है। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में भारतीय समाज, धर्म एवं दर्शन की विमुखता के कारण आस्था प्रश्न चिह्न के रूप में परिणत हो रही है परन्तु अन्तःकरण में विद्यमान मानव का दिव्यत्व उसे निःश्रेयस-सिद्धि हेतु पे्ररित करता है। यथा गीता में कहा है-