हृदय मानव शरीर का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। यह वक्ष के बायीं ओर दोनों फेफड़ों के मध्य स्थित होता है। इसका कार्य मनुष्य के शरीर में रक्त संचार करना है। हृदय के कार्यों में व्यवधान आने से हृदय के घातक रोग होते हैं। ज्योतिष के अनुसार जन्मांग के चतुर्थ भाव से हृदय का विचार किया जाता है, मतान्तर से पंचम भाव को भी देखा जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रहों में सूर्य को हृदय का कारक माना गया है। जिन लोगों को भी हृदय सम्बन्धी रोग होते हैं, उनमें से अधिकांश व्यक्तियों का सूर्य पाप प्रभाव में अवश्य होता है।