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International Journal of Sanskrit Research
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2017, Vol. 3, Issue 5, Part A

तर्पक कफ के जैव भौतिक क्रियाओं का अध्ययन

डाॅ. सुमित कुमार, डाॅ. सुरेन्द्र पाल सिंह जयजानियाँ

आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा विज्ञान है जिसमें चिकित्सा एवं व्याधि का निर्देश दोषों को आधार मानकर किया जाता है तथा दोषों की विकृतावस्था को रोग माना गया है एवं दोषों की प्राकृतावस्था को आधार मानकर ही विकृति का मुल्यांकन किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार के आहार विहार की पर्यायों का मुल्यांकन भी दोषों की प्राकृत स्थिति को जानकर किया जाता है जिससे आयुर्र्वेद अपने प्रयोजन द्वय को सिद्ध करता है। मानव शरीर में नित्य प्रतिदिन ऐसी क्रियाएँ होती रहती है जिनको सहज नहीं समझा जा सकता है। इसमें होने वाली सूक्ष्म से सूक्ष्म क्रियाओं के पीछे कोई न कोई कार्यकारी सिद्धान्त होते है। जो उस क्रिया को सम्पादित करते है।
इन सभी क्रियाओं के पीछे जैव भौतिक एवं जैव रसायनिक के सिद्धान्त और आयुर्वेद मतानुसार त्रिदोष (वात, पित, कफ) कार्य करते है। इनमें तर्पक कफ एक है जिसके प्राकृत स्वरूप एवं क्रियात्मक परिज्ञान के संबंध में स्पष्ट ज्ञान की आवश्यकता है।
तर्पक कफ का विस्तृत, प्राच्य तथा प्रतीच्य दृष्टि से विस्तृत जानकारी हेतु शोध प्रबंध का यह विषय रखा गया है। तर्पक कफ संबंधी साहित्य का अनुशीलन करते हुए तर्पक कफ से संबंधित शरीर में उसका स्थानानुसार स्वरूप एवं कर्म का क्रियात्मक ज्ञान प्राप्त करना है।
प्रस्तुत शोध प्रबंध में प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों का अनुशीलन करके तर्पक कफ का जैव भौतिक एवं स्वरूपात्मक अध्ययन किया गया है। तर्पक कफ के स्थान एवं कर्मो का अध्ययन किया गया है।
Pages : 19-37 | 1410 Views | 177 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. सुमित कुमार, डाॅ. सुरेन्द्र पाल सिंह जयजानियाँ. तर्पक कफ के जैव भौतिक क्रियाओं का अध्ययन. Int J Sanskrit Res 2017;3(5):19-37.

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