भारत वर्ष एक महान् देश है। और इसकी प्राचीनता पुरी दुनिया में विख्यात है। इस देश के साहित्य, वेद, दर्शन, उपनिषद, ब्राह्मणग्रन्थ एवं मनुस्मृति आदि नानाविध साहित्य संपूर्ण जगत के कल्याण के लिए आज भी प्रासंगीक है। एक ओर जहाँ वेदों में ज्ञान, कर्म, उपासना तथा विज्ञान की बातें कही है वहीं दूसरी और उपनिषद आदि ग्रन्थ मानव समाज को मोक्षत्व दिलाने का मार्गदर्शन करता है। मनुस्मृति जैसा पावन धर्मशास्त्र मानव जीवन को उन्नत बनाने का विधियों को लिये हुए समाज का प्रतिनिधित्व करता है। महर्षि मनु ने आदि काल में मानव जीवन को उन्नत प्रगतिशील और राष्ट्ररक्षा, राजधर्म और मानव धर्म के मापदण्डों के द्वारा राष्ट्र को सुबल और सुव्यवस्थित बनाने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। महर्षि मनु ने अपने ग्रन्थ में मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त जहाँ संस्कारों का वर्णन किया है वहीं मनुष्य के जीवन को सुखमय बनाने के लिए राजधर्म का भी वर्णन किया है। महर्षि मनु ने निरूसन्देह सर्वोत्कृष्ट राजधर्म व्यवस्था का सृजन किया। आदिकाल के राजाओं को हम देखें, राजा राम से लेकर युधिष्ठिर तक और जितने भी चक्रवर्ती सम्राट आर्यावत्र्त में हुए उन सभी की व्यवस्थाओं में राजधर्म झलकता है। राजर्षि मनु ने अपने ग्रन्थ मनुस्मृति में राजधर्म का वर्णन बडे ही चारित्रिक और राष्ट्र निर्माण का मूल मंत्र पिरोया है। ग्रन्थकार अपने इस महान् ग्रन्थ के द्वारा मानव समाज को संगठित वा उन्नत बनाने के लिये अनेक माध्यमों से राजधर्म की व्याख्या कर राजा, मंत्री, सभासद्, प्रजा तथा इन पर प्रयुक्त होने वाले दण्ड विधान, कर व्यवस्था, तथा न्याय व्यवस्था, का बहुत सुन्दर ही वर्णन किया है अपितु इस ग्रन्थ में अनेक विषय है परन्तु मैंने अपने शोध का विषय मनुस्मृति में राजधर्म लिया है जिसको कई भागों में विभाजित कर उसके विषय में वर्णन किया जायेगा।