पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ शोध-पतà¥à¤° में à¤à¤¾à¤°à¤¤ à¤à¤µà¤‚ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ पर चिनà¥à¤¤à¤¨ करते हà¥à¤ वैदिक काल से लेकर आधà¥à¤¨à¤¿à¤• काल परà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ हà¥à¤ à¤à¥Œà¤—ोलिक à¤à¤µà¤‚ सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिवरà¥à¤¤à¤¨à¥‹à¤‚ को सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया गया है। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® यह विचार किया जाना बहà¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है कि हम किसका वरà¥à¤£à¤¨ करेंगें-à¤à¤¾à¤°à¤¤, à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤·, इणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾, हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨, आरà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ या जमà¥à¤¬à¥‚दà¥à¤µà¥€à¤ªà¥¤ इतिहास साकà¥à¤·à¥€ है कि ये सब à¤à¤¾à¤°à¤¤ के ही समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ नाम हैं। यह बात आंशिक रूप से सतà¥à¤¯ à¤à¥€ है। आंशिक इसलिठकि ये à¤à¤¾à¤°à¤¤ अथवा इणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾ के नाम नहीं अपितॠजमà¥à¤¬à¥‚दà¥à¤µà¥€à¤ª के ही अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ के नाम है। कालचकà¥à¤° के साथ जमà¥à¤¬à¥‚दà¥à¤µà¥€à¤ª के टà¥à¤•à¥œà¥‡ होते गठऔर उसी विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के परिणामसà¥à¤µà¤°à¥‚प विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ नामकरण à¤à¥€ होते गà¤à¥¤
अब पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ उठता है कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ कहाठतक था? उसकी सीमा कà¥à¤¯à¤¾ थी? यह जब तक सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¥à¤¯à¤¾ न जान लिया जाय, तब तक à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का विसà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ चितà¥à¤° सामने आना कठिन है। इसका कारण यह है कि जितने à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ आचार, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°, कला, कौशल आदि है, वे सब पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥‹à¤‚ में निबदà¥à¤§ हैं। अदà¥à¤¯à¤¤à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ उसकी अपेकà¥à¤·à¤¾ बहà¥à¤¤ संकà¥à¤šà¤¿à¤¤ हो गया है। उसे तो जाने दीजिठà¤à¤¾à¤°à¤¤ का जो à¤à¥‚गोल आज से 20 वरà¥à¤· पहले था, वह à¤à¥€ आज नहीं है।