International Journal of Sanskrit Research
2017, Vol. 3, Issue 4, Part E
गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¤¾à¤° – वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¤¸à¤¨à¥à¤¦à¤°à¥à¤à¥‡ author(s) Nandini Das
abstract परमबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की गयी विविध योनि तथा पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤“ं का वाससà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पृथà¥à¤µà¥€à¤²à¥‹à¤• है। सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤“ं में आहार-निदà¥à¤°à¤¾-à¤à¤¯-मैथà¥à¤¨ समानरूप में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। परनà¥à¤¤à¥ इन सà¤à¥€ जीवों में मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीव ही सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ हैं, कारण à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° धरà¥à¤® ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से तथा पशॠसे विशेष बनाता हैं। धरà¥à¤® मानव को जीवन में उचित पथ, जीवनशैली, आचार, वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° आदि निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ करता हैं। मानव जीवनशैली में संसà¥à¤•à¤¾à¤° अतिमहतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° है, वासà¥à¤¤à¤µ में देखा जाय तो मनà¥à¤·à¥à¤¯ का जीवन संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ का ही कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मन को जिसपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का लगाम कहा जाता हैं उसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° संसà¥à¤•à¤¾à¤° à¤à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का बनà¥à¤§à¤¨ होते है, कà¥à¤¯à¥‹à¤•à¤¿à¤‚ बिना लगाम के इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ इतसà¥à¤¤à¤¤à¤ƒ परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ होता रहते है। संसà¥à¤•à¤¾à¤° रहित मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन à¤à¥€ शृङà¥à¤–लाबदà¥à¤§ नहीं होते है। इसीलिठमनà¥à¤·à¥à¤¯ की शारीरिक, मानसिक à¤à¤µà¤‚ आतà¥à¤®à¤¿à¤• उनà¥à¤¨à¤¤à¤¿ के लिठजनà¥à¤® से लेकर मृतà¥à¤¯à¥à¤ªà¤°à¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ संसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° à¥à¤— से की है। षोडशसंसà¥à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ में गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¤¾à¤° का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¥à¤® है। पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ जिसपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° जनà¥à¤® गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते है उसीपà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° मृतà¥à¤¯à¥ को à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं, परनà¥à¤¤à¥ ईशà¥à¤µà¤° ने पृथà¥à¤µà¥€ का सामञà¥à¤œà¤¸à¥à¤¯ बनाये रखने के लिठसनà¥à¤¤à¤¤à¤¿ का विधान दिया है। सनà¥à¤¤à¤¨à¤¿ के जनà¥à¤® के लिठबीजवपन करना ही गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨ संसà¥à¤•à¤¾à¤° है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ ऋषिओं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° शिशॠकी मन, सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µ, जीवनकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° आदि सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤°à¥‚प में बीजवपन के समय में ही निधारà¥à¤°à¤¿à¤¤ होते हैं। सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· के मिलन को केवल à¤à¥‹à¤—-विलास की वसà¥à¤¤à¥ न समà¤à¤•à¤° उतà¥à¤¤à¤® सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठà¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾-शरीर-कà¥à¤·à¤£-काल आदि गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¤¾à¤° के रूप में वरà¥à¤£à¤¨ किया गया है। इसीलिठगरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨ संसà¥à¤•à¤¾à¤° विशेषरूप से महतà¥à¤¤à¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है।
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Nandini Das. गरà¥à¤à¤¾à¤§à¤¾à¤¨à¤¸à¤‚सà¥à¤•à¤¾à¤° – वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤•à¤¸à¤¨à¥à¤¦à¤°à¥à¤à¥‡ . Int J Sanskrit Res 2017;3(4):264-271.