International Journal of Sanskrit Research
2017, Vol. 3, Issue 4, Part E
वेद-वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ - à¤à¤• विवेचन
डाॅ0 राकेश शरà¥à¤®à¤¾
आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ विशà¥à¤µ की विविध à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¨ चिकितà¥à¤¸à¤¾ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• है। इसको हम वेद का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° तथा विजà¥à¤žà¤¾à¤¨, कला और दरà¥à¤¶à¤¨ का मिशà¥à¤°à¤£ à¤à¥€ कह सकते हैं। आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का अरà¥à¤¥ है-जीवन का जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥¤ इसे ही हम संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ का सार कह सकते हंै। विशà¥à¤µ की सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ का मूलाधार कहे जाने वाले ‘वेदों’ में à¤à¥€ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ यतà¥à¤°-ततà¥à¤° निरूपित है। इस शोध पतà¥à¤° के माधà¥à¤¯à¤® से वेदों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥ˆà¤¦à¤¿à¤• विषयों, आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ अंग, आयà¥à¤°à¥à¤µà¥ˆà¤¦à¤¿à¤• चिकितà¥à¤¸à¤¾ के à¤à¥‡à¤¦, वैदà¥à¤¯ के कतà¥à¤°à¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ तथा नीरोग à¤à¤µà¤‚ दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ के उपायों का संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में वरà¥à¤£à¤¨ किया जा रहा है, जिसकी मानव जीवन में विशेष उपयोगिता है। वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ समय में à¤à¥€ बॠरहे रोगों से निजात पाने में आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ विशेष à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾ रहा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में ही नहीं विदेशों में à¤à¥€ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ पर कई शोध हो रहे हैं जो इसकी महतà¥à¤¤à¤¾ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ करते हैं।
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डाॅ0 राकेश शरà¥à¤®à¤¾. वेद-वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ - à¤à¤• विवेचन. Int J Sanskrit Res 2017;3(4):252-255.